रोजमर्रा की जिंदगी में अपने हर काम के लिए मोबाइल फोन पर निर्भर उपभोक्ताओं के लिये सिरदर्द बन चुके कॉल ड्रॉप के मुद्दे पर दूरसंचार नियामक और टेलीकॉम ऑपरेटरों के बीच लगातार बढ़ रही तरकरार से उपभोक्तओं को राहत मिलने की उम्मीद धूमिल होती दिख रही है। पिछले करीब एक साल से ग्राहकों की कॉल ड्रॉप की बढ़ती शिकायतों को ध्यान में रखते हुये भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने 1 जनवरी 2016 से प्रत्येक कॉल ड्रॉप पर एक रुपये जुर्माने का आदेश दिया है। इससे बौखलाये टेलीकॉम ऑपरेटर टावरों की संख्या घटाये जाने, स्पेक्ट्रम की कम उपलब्धता और राजस्व पर दबाव बढ़ने की दुहाई देकर इससे दूर भागने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने उन पर बेहतर सेवा के लिए पर्याप्त निवेश नहीं करने और उपलब्ध स्पेक्ट्रम का अधिकांश हिस्सा वॉयस सर्विस की बजाय डाटा सेवा के विस्तार के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। इससे नियामक और कंपनियों के बीच खींचतान बढ़ने से जुर्माने के आदेश को तय समयसीमा पर लागू कर पाना मुश्किल दिख रहा है। हालांकि, ट्राई ने इसे लागू करने के फैसले पर दृढ़ता दिखाते हुए कहा है कि यह एक वैध निर्णय है और इसे संशोधित या रद्द नहीं किया जा सकता। ट्राई के 16 अक्टूबर के आदेश के मुताबिक, दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों के लिए प्रत्येक कॉल ड्रॉप पर उपभोक्ताओं को एक रुपये क्षतिपूर्ति देना अनिवार्य है। एक दिन में इसकी अधिकतम सीमा तीन होगी। यानि ऑपरेटरों को पूरे चैबीस घंटे में प्रति उपभोक्ता अधिकतम तीन रुपये की भरपाई करनी होगी। इससे दुनिया के तीसरे बड़े मोबाइल फोन बाजार में अपनी आमदनी घटने के खतरे को भांपते हुये ऑपरेटरों ने बचाव में कॉल दरें बढ़ाने की चेतावनी भी दे डाली। दूरसंचार कंपनियों के शीर्ष संगठन सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने कहा कि देश के 50 फीसदी उपभोक्ताओं ने कॉल ड्रॉप की शिकायत की है। ट्राई का क्षतिपूर्ति आदेश लागू होने से कंपनियों को भरपाई के लिए प्रतिदिन 150 करोड़ रुपये खर्च करना होगा। वहीं, एक गैर सरकारी संगठन टेलीकॉम वाचडॉग का अनुमान है कि इस पर पूरे एक साल में प्रत्येक ऑपरेटर का खर्च 10 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होगा। टावरों की संख्या में हो रही कमी को कॉल ड्रॉप का मुख्य कारण मानते हुये सीओएआई के महानिदेशक राजन एस. मैथ्यूज का कहना है कि स्थानीय अधिकारी मोबाइल टावरों को लगातार निष्क्रिय कर रहे हैं। कम टावरों के कारण नेटवर्क कवरेज कमजोर हो रहा है। इससे कॉल ड्रॉप की समस्या बढ़ी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में केवल तीन सप्ताह के भीतर 350 टावरों और मुंबई में चार-पांच महीने के दौरान 100 से अधिक टावरों को निष्क्रिय कर दिया गया। हालांकि सरकार इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास कर रही है।