प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को तीन स्वर्ण योजनाएं घोषित कीं। मकसद है, देश में अनुुपयोगी पड़े सोने के वित्तीय उपयोग का रास्ता निकालना और इस तरह देश में पूंजी-प्रवाह बढ़ाना। जाहिर है, यह अर्थव्यवस्था को और गतिशील बनाने की कवायद है। अलबत्ता ऐसी पहल बिल्कुल नई नहीं है। लेकिन पहले की स्वर्ण जमा योजना से कई मायनों में कुछ फर्क है। जमा किए गए सोने पर पहले एक फीसद का मामूली ब्याज मिलता था। इसके अलावा, सोने की मात्रा कम से कम आधा किलो होना अनिवार्य था। नई योजना में न्यूनतम तीस ग्राम सोना भी जमा किया जा सकता है। इस पर सवा दो से ढाई फीसद तक ब्याज मिलेगा। इस तरह सोना जमा करने की योजना को पहले के मुकाबले और आकर्षक बनाने की तजवीज की गई है। न्यूनतम मात्रा यह सोच कर काफी घटा दी गई है कि यह आम लोगों के लिए भी उपयोगी हो सके। हमारे देश के लोगों में सोने की चाहत बहुत प्रबल है। पुश्तों से यह बचत की पूंजी जमा करने और सुरक्षित निवेश का सबसे आसान जरिया माना जाता रहा है। चीन के लोगों में भी सोने की जबर्दस्त ललक रही है। इसलिए चीन और भारत, दोनों देश सोने के आयात में सबसे आगे रहे हैं। चीन पहले स्थान पर था, पर अब भारत ने उसे पीछे छोड़ दिया है। जैसा कि प्रधानमंत्री ने भी जिक्र किया, इस साल अब तक चीन का सोने का आयात पांच सौ अड़तालीस टन रहा, जबकि भारत का इससे चौदह टन ज्यादा। लेकिन सोने का इतना अधिक आयात हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं है, क्योंकि इससे हमारे विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा हिस्सा गैर-उपयोगी मद में चला जाता है। हमारी विदेशी मुद्रा पेट्रोलियम के बाद सबसे ज्यादा सोने के आयात की ही भेंट चढ़ती है। नई योजनाएं इसी मकसद से शुरू की गई हैं कि देश में अनुपयोगी पड़े सोने को पूंजी प्रवाह में बदला जा सके, और दूसरा, सोने का आयात घटाया जा सके। स्वर्ण मुद्रीकरण यानी जमा किए गए सोने पर ब्याज की सुविधा के साथ ही सरकार ने अशोक चक्र और महात्मा गांधी के चित्र वाले पांच ग्राम तथा दस ग्राम के सिक्के शुरू कर लोगों को निवेश का एक और विकल्प दिया है। इसी के साथ स्वर्ण बांड योजना भी शुरू की गई है जिसके तहत दो ग्राम सोने से अधिकतम पांच सौ ग्राम सोने तक के बराबर बांड खरीदने का विकल्प होगा। अनुमान है कि देश में करीब बीस हजार टन सोना अनुपयोगी रूप से जमा है जिसका आधा या आधे से अधिक हिस्सा लोगों के पास गहनों की शक्ल में है। मंदिरों के पास सोने का जो विशाल भंडार है वह भी ज्यादातर गहनों के रूप में है। ये गहने लोगों के लिए अचल पूंजी के साथ-साथ पारिवारिक विरासत की निशानी भी होते हैं। मंदिरों के मालिकाने वाले बहुत सारे आभूषण ऐतिहासिक महत्त्व के भी होंगे। इसलिए यह निश्चित अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि कितनी संस्थाएं और लोग अपने सोने की पहचान मिटने यानी आभूषणों को गलाने की इजाजत देंगे। हां, ढाई प्रतिशत तक ब्याज की सुविधा और फिर एक निश्चित अवधि के बाद अपने जमा किए गए सोने को उतनी ही मात्रा में वापस पाने का प्रावधान बहुत-से जरूरतमंद लोगों के लिए मददगार साबित होगा, वहीं बहुत-से लोगों के लिए बेहतर निवेश का जरिया भी। पर एक अंदेशा है कि कहीं यह काले धन को सफेद करने का जरिया भी न बन जाए।