Admission Open DCA PGDCA BCA MSC BA BCOM BSW, CALL 07554905511 MSW www.hitechbhopal.com

Saturday, October 17, 2015

भारत में गौ हत्या कानून और गौ मांस की बिक्री 

भारत में गौ हत्या कानून और गौ मांस की बिक्री को लेकर पिछले कुछ महीनों से चर्चा तेज है. हाल ही में बीते बकरीद के त्यौहार पर इस चर्चा ने और जोर पकड़ा, जब स्थानीय कानून के खिलाफ जाकर श्रीनगर में गौ हत्या के कई मामले हुए कुर्बानी के नाम पर. इस दौरान हिंसा भी हुई. यूपी में अखलाक की हत्या को लेकर भी गौ हत्या कानून, गौ मांस की बिक्री और सेवन का मुद्दा चर्चा के केंद्र में है. सवाल उठता है कि आखिर उत्तर प्रदेश में गौ हत्या को लेकर सख्त कानून कैसे बना. दरअसल उत्तर प्रदेश में इसे लेकर जो कानून  है, वो 1955 से ही लागू है. इस कानून के तहत ‘बीफ’ की परिभाषा भी दी गई है, जिसके मुताबिक बीफ से आशय गाय, सांढ और बैल के मांस से हैं.
जहां तक गाय का सवाल है, उसकी परिभाषा में गाय के बछड़े और बछिया को भी शामिल किया गया है. इस कानून के तहत गाय की हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध है यानी गाय कितनी भी बूढ़ी क्यों न हो जाए, उसकी हत्या नहीं की जा सकती. सांढ़ या बैल को भी तभी मारा जा सकता है, जब वो या तो पंद्रह साल से ज्यादा के हो चुके हों या फिर खेती के काम या प्रजनन के उपयुक्त नहीं रह गये हों. ऐसे जानवरों को भी मारे जाने के पहले ‘फिट फॉर स्लॉटर सर्टिफिकेट’ हासिल करना आवश्यक है.

जहां तक गाय का सवाल है, उसे वध करने के लिए राज्य के बाहर भी ले जाना प्रतिबंधित है. सबसे बड़ी बात ये कि उम्रदराज बैल या सांढ़ को मारा तो जा सकता है, लेकिन बीफ की बिक्री नहीं हो सकती है यानी इन पशुओं का मांस बेचा नहीं जा सकता. अगर इस अपराध के तहत कोई पकड़ा जाता है, तो जो धाराएं लगाई जाती हैं, वो संज्ञेय और गैर-जमानती हैं. दोषी पाये जाने पर दो साल तक की सजा या एक हजार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों ही सजा दी जा सकती है.
1955 में जब ये कानून बना, तो उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे गोविंद वल्लभ पंत. पंत आजादी पहले भी तत्कालीन संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री 1937 से 1939 तक रहे थे. उसके बाद 1946 से लेकर 1955 तक वो लगातार मुख्यमंत्री रहे, गुलामी से लेकर आजादी तक का सफर यूपी ने उनके मुख्यमंत्री रहने के दौरान ही पूरा किया. उसी काल में उत्तर प्रदेश में गौ हत्या प्रतिबंध कानून बना, जो आजतक चला आ रहा है. पंत 1955 से लेकर अपनी मौत यानी 7 मार्च, 1961 तक नेहरु की सरकार में लगातार केंद्रीय गृह मंत्री बने रहे. सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश में, जहां 1955 में भी मुस्लिम आबादी बड़ी तादाद में थी, इतना सख्त गौ हत्या कानून बना कैसे, वो भी तब जब नेहरु अपने विचारों में काफी उदारवादी थे और पंत उनके खास सहयोगी, कांग्रेस पार्टी के अंदर.

इस संबंध में एक प्रसंग काफी रोचक है, जो आरएसएस के चौथे सरसंघचालक राजेंद्र सिंह, जिन्हें उनके जानने वाले ‘रज्जू भैया’ के नाम से जानते थे, की आत्मकथा संबधी पुस्तक में वर्णित है. ‘हमारे रज्जू भैया’ नामक इस किताब के पृष्ठ 366-367 पर वीरेंद्र कुमार सिंह चौधरी का संस्मरण है, जो एक समय उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता रह चुके थे. चौधरी लिखते हैं कि 1954 के आसपास की बात है, जब इलाहाबाद के ही रहने वाले प्रभुदत्त ब्रह्मचारी नामक संत ने यूपी में गोरक्षा अभियान चला रखा था. चौधरी खुद उस समिति के महामंत्री थे, जिसके बैनर तले आंदोलन चल रहा था. चौधरी के शब्दों में – उस संबंध में ब्रह्मचारीजी रज्जू भैया को लेकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. गोविंद वल्लभ पंत से मिलने गए.
ब्रह्मचारीजी का पूर्ण मौन टूट चुका था, पर वे फिर भी बोलते न थे, लिखकर बात करते थे. इसलिए रज्जू भैया (जिनके उपर उनका अनन्य स्नेह व विश्वास था) को साथ लेकर भेंट हुई. पंतजी को भी अपने प्रदेश के प्रथम भारतीय अभियंता के यशस्वी युवा पुत्र पर स्नेह व अभिमान था और रज्जू भैया के हृदय में पंतजी के प्रति अपार श्रद्धा. जब गोरक्षा विधेयक के बारे में बात शुरु हुई, तो राजनीतिज्ञ की भांति पंतजी ने कहा, “रज्जू, तू क्या जाने, अधिनियम बनाने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है? कौन सी बातें विचारणीय हैं? सबकी राय व सहमति से ही कानून बन सकता है.” रज्जू भैया ने कुछ कहने का प्रयास किया. पर पंतजी अपनी बात पर डटे रहे. अंत में कहा, “देख रज्जू, मेरी तुझसे दुगनी आयु है. जब तू मेरी आयु का होगा, तब समझेगा कि सहमति कैसे बनती है. उसे बनाने में जल्दबाजी नहीं चलेगी.” तब एकाएक रज्जू भैया ने कहा, “पंतजी, मैं दुगनी गति से जीवन जी रहा हूं.” सुनकर पंतजी ठहाका मारकर जोर से हंस पड़े. कहा, “अच्छा रज्जू, तू जीता. कानून बनेगा.” और उत्तर प्रदेश में गोवध निवारण अधिनियम आया.

ध्यान रहे कि उस वक्त राजेंद्र सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के अध्यापक थे. 1943 से लेकर 1966 तक उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे भौतिकी पढ़ाई, जहां एक समय वो खुद छात्र रहे थे. राजेंद्र सिंह 1994 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के चौथे प्रमुख यानी सरसंघचालक बने. सवाल उठता है कि क्या वाकई कांग्रेस के एक बड़े स्तंभ और उत्तम प्रशासक रहे गोविंद वल्लभ पंत ने आरएसएस के एक नेता के कहने पर उत्तर प्रदेश में गो हत्या निषेध कानून बनाया. आज इसका जवाब देने के लिए न तो पंत हमारे सामने हैं और न ही राजेंद्र सिंह. अगर कुछ बचा है तो बस उस दौर के संस्मरण.