भगवद् कथा समाजको बेहकाने हेतु नहीं किन्तु समाजको महकाने हेतु है ।
जिसका कोई मित्र नहीं ना ही कोई शत्रु वो साधू के लक्षण है ।
साधु को मान अपमान नही होता ।
संसारी जीव आँशु गिराते है और साधु आँशुओ को पिते है ।
साधक की यात्रा स्थूल से सूक्ष्म तरफ की होनी चाहिये ।
सद्गुरु हमारी सुषुप्त इन्द्रियों को जागृत करते है ।
सद्गुरु हमारे एक देशी वैद है सद्गुरु महान वैद है ।
दुनिया का दास नहीं होना , किसी सद्गुरु का दास होना ।
यदि कोई शरीरधारी सद्गुरु नहीं पहचाना जाये तो रामचरित मानस भी सद्गुरु है ।
दया के कारण होते है कृपा अकारण होती है ।
सुंदरता केवल शरीर की ही नहीं होती , सुंदरता विचारो में और सुंदरता वृति में भी होनी चाहिये ।
निजसुख यानी भीतर से प्रगट होता रागद्वेष मुक्त अनुराग ।
बापू वचनामृत