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Sunday, December 6, 2015

भगवान् की कथा सामूहिक साधना है  ।

भगवद् कथा समाजको बेहकाने हेतु नहीं किन्तु समाजको महकाने हेतु है ।

जिसका कोई मित्र नहीं ना ही कोई शत्रु वो साधू के लक्षण है ।

साधु को मान अपमान नही होता ।

संसारी जीव आँशु गिराते है और साधु आँशुओ को पिते है ।

साधक की यात्रा स्थूल से सूक्ष्म तरफ की होनी चाहिये ।

सद्गुरु हमारी सुषुप्त इन्द्रियों को जागृत करते है ।

सद्गुरु हमारे एक देशी वैद है सद्गुरु महान वैद है ।

दुनिया का दास नहीं होना , किसी सद्गुरु का दास होना ।

यदि कोई शरीरधारी सद्गुरु नहीं पहचाना जाये तो रामचरित मानस भी सद्गुरु है ।

दया के कारण होते है कृपा अकारण होती है ।

सुंदरता केवल शरीर की ही नहीं होती , सुंदरता विचारो में और सुंदरता वृति में भी होनी चाहिये ।

निजसुख यानी भीतर से प्रगट होता रागद्वेष मुक्त अनुराग ।

बापू वचनामृत