Admission Open DCA PGDCA BCA MSC BA BCOM BSW, CALL 07554905511 MSW www.hitechbhopal.com

Tuesday, November 22, 2016

गाय पालन व्यवसाय के रूप में लाभान्वित...

गो, गोपाल, गोधरा-पृथ्वी


इस वैज्ञानिक युग में घोर अवैज्ञानिक मतिभ्रम फेेला हुआ है। तभी तो नास्तिकता, हिंसा स्वार्थ लोलुपता आदि अवगुणों को अधिकाधिक प्रश्रय मिल रहा है। मानवता पथभ्रष्ट हो गयी है। मनुष्य का मस्तिष्क और शरीर दोनों विकृत  से प्रतीत हो रहे है। यही कारण है कि विज्ञान के अंधभक्त प्राय: धर्म के नाम से चिढ़ते हैं और विज्ञान का नाम सुनकर धर्म के पैर उखड़ जाते हैं ऐसा कहते हुए भी सुने जाते हैं। यह तो धर्म का उपहास करने वालों का असंगत प्रलाप है। इस धर्मप्राण भारतभूमि में इस प्रकार की उक्ति का उच्चार और व्यवहार दोनों ही अनुचित हैं। इसमें भी संदेह नही किधर्म को प्राण मानने वाली आर्य जाति के कतिपय आचार विचार भी दम्भ में ही घुले प्रतीत होते हैं। उदाहरणार्थ गोभक्ति। परस्पर अभिवादन में जै गोपाल हरिकीर्तन मेंं गोपाल जय जय की ध्वनि हम लोग खूब करते हैं। पर गोपाल की परम प्रेयशी गोमाता की रक्षा तथा उसकी स्थिति में सुधार के लिए कुछ वास्तविक कार्य हमसे नही बन पड़ता। इसे दम्भ ही तो कहा जाएगा। वस्तुत:
धर्मो विश्वस्य जगत: प्रतिष्ठा, लोके धर्मिष्ठ पापमपनुदन्ति धर्मे, सर्व प्रतिष्ठित: तस्माद्घर्म परम वदन्ति।।
यह उपनिषद वाक्य सर्वथा वैज्ञानिक है। इसलिए प्राचीन ऋषियों ने धर्म की सुहढ़ आधार शिला पर ही सनातन आर्य जाति की नींव डाली थी। घोर अंधकारपूर्ण संसार सागर में मार्ग निश्चित करने के लिए धर्म का प्रकाश गृह ही सहायक है औरन् रहेगा।
सत्याधारस्त पस्पैल दयां वर्ति: क्षमा शिखा।
अंधकारे प्रवेष्टव्ये दीपो यत्रे न धार्यताम।।
महाभारत कार की यह उक्ति कितनी रहस्यपूर्ण है। किंतु , हाय हिंदू जाति का यह धर्मदीप अद्यावधि निर्वाणोन्मुख प्रतीत हो रहा है। उसके आधार में ही घुन लगा है। तैल, वर्ति और शिखा की तो कथा ही अलग है। गोजाति का भीषण पतन और उसकी रक्षा के प्रति गोभक्तों की किंकर्तव्य विमूढ़ता यहन्ी तो कर रही है।
वस्तुत: गोशब्द से संपूर्ण आर्य संस्कृति का इतिहास अंर्तनिहित है। परंतु इस रहस्य को समझने के लिए हमारा मस्तिष्क कहां समर्थ है? शरीर और मन को पुष्ट करने के लिए गो दुग्ध रसायन  तो भारतीयों के लिए दुर्लभ होने लग गया है। फिर आत्मा की पुष्टि की कल्पना कैसे करें। इसके लिए हमें अपने अतीत से शिक्षा ग्रहण करनी होगी। हमारे ऋषियों महऋषियों ने बार-बार यह प्रतिपादित किया है कि गाय इस सृष्टि के लिए परमात्मा द्वारा प्रदत्त अलौकिक प्रसाद है। यह हमें सीधे सीधे द्युलोक अंतरिक्ष से प्राप्त हुआ है। अत: इसका सीधा संबंध अंतरिक्ष स्थित उस परम अलौकिक अनंत लोक से जुड़ा हुआ है। यह उसी अनंक का अंश है। अंतरिक्ष लोक का नाम भीगो है तथा अंतरिक्षलोक में रहने पदार्थों को भी गो कहते हैं।
सोअपि गोरूच्यते। सुषुम्न: सूय्र्यरश्मि चंद्रमा गंधर्व:।
चंद्रमा का नाम गो है। सर्वेअपि गावउच्यन्ते। सब प्रकार की किरणें गो शब्द से बोधित होती हैं। चंद्रमा की किरणों को भी गो कहते हैं। बिजली भी गो-पद से बोधित होती है।
गोरिति पृथिव्या नाधेयं यदस्यां भूतानि गच्छन्ति।
अर्थात गो शब्द पृथ्वी का वाचक है, क्योंकि पृथ्वी स्वयं गातियुक्त है और सब प्राणी इस पृथ्वी पर चलते हैं। इस कारण भूमि को गो कहते हैं। इंद्रियों को नाम भी गो है। शरीर के बाल भी गो कहे जाते हैं। वाणी शब्द, वाक्य एवं वक्तृव्य भी गो पद से बोधित होते हैं, हीरा रजत, सुवर्ण आदि खनिज पदार्थों को भी ‘गो’ कहते हैं। वे गो नाम पृथ्वी से ही उत्पन्न होने के कारण घास, वृक्ष, ावनस्पति आदिद भी गो कहते हैं। दिशासूचक यंत्र भी इसी संबंधी से गो कहा जाता है। जिस तरह गो से उत्पन्न दूध, दही, छाछ, दही, मक्खन आदि सभी पदार्थ गो ही कहते जाते हैं, उसी तरह भूमि रूपी गौ से उत्पन्न सभी पदार्थ भी गो कहलाते हैं गो सब में निहित है, गाय में सब समाहित हैं। अत: वेद उनकी अभ्यर्थना करता है।
आ गावो अम्मत्रुत भद्रमकृन्स्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्स्वस्मे
प्रजावती: पुरूरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वी रूषसो दुकाना।।
गौएं आ गयी हैं और उन्होंने हमारा कल्याण किया है। वे गौएं गौशालाओं में बैठे तथा हमें सुख दें, यहां उत्तम बच्चों से युक्त एवं उनके रूपवाली हो।
वे इंद्र के लिए उष: काल के पूर्व दूध देने वाली बने। इसलिए तो इन्हेें माता कहा गया है व इन्हें सर्वथा अवध्य स्वीकार किया गया है। भारतीय संस्कृति एवं हिंदू धर्म में गौमाता का सर्वोच्च स्थान है। वह सर्वदेवमयी है। सर्व पूज्या है, उसका वध करना व उसे पीड़ा पहुंचाना भी अधर्म कहा गया है। यह हिंदुओं की एक मुख्य विशेषता है कि भले ही सारे संसार के दूसरे लोगों ने गो-मांस को एक खाद्य  पदार्थ माना है, हमने गो के शरीर को पवित्र घोषित किया है तथा गौवध को घोर पाप समझकर उसकी निंदा की है। हिंदुओं ने अधिक गहराई से विचार किया है। उनकी दृष्टि इस प्रश्न के आध्यात्मिक पहन्ले की ओर गयी है। यदि ईश्वर की यह इच्छा होती है कि गाय भोजन का अंग बने तो वह गाय के दूध को इतना अमूल्य भोजन विशेषकर बच्चों, बूढ़ों तथा अशक्तों के लिए क्यों बनाता। हमारे ऋषियों ने बहुत गंभीर और लंबे विचार के बाद यहन् पता लगाया कि ईश्वर की जो शक्ति मां के रूप में प्रकट होती है, वही गाय के रूप में भी अभिव्यक्त हुई है। मां का एकमात्र उद्देश्य बच्चे का हित करना है। वह अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में यही सोचती रहती हन्ै कि किस प्रकार से बच्चा स्वस्थ, सुखी और भला बने। ऐसा प्रतीत होता है कि उसका अस्तित्व ही इसी कार्य के लिए है। इसी प्रकार गाय का अस्तित्व भी मानव जाति के हित के लिए ही है। दूध तथा उसकेे बने हुए पदार्थों द्वारा मनुष्य जाति का अनेक प्रकार से हित होता है, छोटे से छोटे और निर्बल से निर्बल रोगी से लेकर अत्यंत हृदय पुष्ट व्यक्ति तकको दूध के द्वारा बने हुए पदार्थों से सर्वोत्तम पोषण मिल सकता है। गाय अत्यंत सस्ती से सस्ती घास फूस खाकर सर्वोत्तम भोजन प्रदान करती है। उसका शरीर कैसा आश्चर्यजनक यंत्र है। उस परमपिता परमेश्वर की शक्ति कितनी महान तथा कल्याणकारी है। जो ऐसे विलक्षण यंत्र की रचना कर सकता है। क्या अपनी रसानेन्द्रियों की तृप्ति के लिए ऐसे जीवन को मारना अत्यंत घृणित कृतघनता नही है? क्या ईश्वरीय व्यवस्था के प्रति यह अत्यंत अनुचित विद्रोह नही है। अत: आज ही प्रबल आवश्यकता यह है कि वैज्ञानिकता के नाम पर पाश्चात्य की अधार्मिक विचारधारा का अंधानुकरण करन्ना त्याग करन् मानवता के वैश्विक सत्य को समझें और सत्य का ही अनुसरण करें।  यही हितकारी है।

गाय के दूध से सैकड़ों बीमारियों का इलाज संभव है।

गाय के दूध से सैकड़ों बीमारियों का इलाज संभव है।
इससे बचपन से ही ग्रहण करने से बुद्धि तेज व शरीर बलवान बनता है। विश्व में
 ऐसी अलौकिक घटनाएं हो चुकी हैं, जिन पर विश्वास करना असंभव है, जैसे
कैंसर, गठिया, व अन्य दुर्लभ बीमारियों का उपचार गो मूत्र से किया गया। जो
व्यक्ति गाय के बायें कान में मन की कामना करता है उसकी कामना भगवान स्वयं
पूरा करते हैं। गाय मानव व भगवान के बीच सत्य कर्मो को पहुंचाने वाला सेतु
है।

गौ संवर्धन एवं कृषि


वैदिक काल में समद्ध खेती का मुख्य कारण कृषि का गौ आधारित होना था। प्रत्येक घर में गोपालन एवं पंचगव्य आधारित कृषि होती थी, तब हम विश्व गुरू के स्थान पर थे। भारतीय मनीषियों ने संपूर्ण गौवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास एवं संवर्धन के लिये आवश्यक समझा और ऐसी व्यवस्थाऐं विकसित की थी जिसमें जन मानस को विशिष्ट शक्ति बल तथा सात्विक वृद्धि प्रदान करने हेतु गौ दुग्ध, खेती के पोषण हेतु गोबर-गौमूत्र युक्त खाद, कृषि कार्यो एवं भार वहन हेतु बैल तथा ग्रामद्योग के अंतर्गत पंचगव्यों का घर-घर में उत्पादन किया जाता था। प्राचीन काल से ही गोपालन भारतीय जीवन शैली व अंर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग रहा है।
वर्तमान में मनुष्य को अनेकों समस्याओं जैसे मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण असंतुलन, जल का दूषित होना, कृषि भूमि का बंजर होना आदि से जूझना पड़ रहा हैं। इन विपरित परिस्थतियों में हमें अपने आप को स्वस्थ एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न रखना है तो दैनिक जीवन में गौ-दूग्ध एवं पंचगव्य उत्पादों का तथा कृषि में गौबर एवं गौमूत्र से उत्पादित कीटनाशकों एवं जैविक खादों का उपयोग बढ़ाना होगा।
भारत वर्ष ही एक एैसा राष्ट्र है जिसमें दूध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। आज हमारा देश संसार में सर्वाधिक 140.3 मिलीयन टन दूध उत्पादन करने वाला देश हैं। जो 2019-20 तक 177 मिलीयन टन बढकर हो जाने का अनुमान है। भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 290 ग्राम है जो संसार के औसत उपलब्धता से ज्यादा हैं। पिछले 5 वर्षो में भारत का दूध उत्पादन 25 मिलीयन टन बढ़ा, इसकी तुलना में अमेरिका में 6.6 मिलीयन टन, चीन में 5.4 मिलीयन टन एवं न्यूजीलैन्ड में 2.7 मिलीयन टन ही बढ़ा। इससे सिद्ध होता है कि हमारा पशुपालक एवं पशुधन किसी से कम नहीं है।
यद्यपि हमारे पास 304 मिलीयन का विशाल दुधारू पशुधन है, जिसमें 16.60 करोड़ भारतीय नस्लकीदेशी व 3.3 करोड़ संकर नस्ल की गाये है तथा 10.53 करोड़ भैसे है, जिनसे 7 करोड़ पशुपालकों द्वारा प्रतिदिन 33 करो़ड लीटर दूध का उत्पादन किया जाता है, जो अपने आप में एक कीर्तिमान हैं।
समय समय पर निति निर्धारकों एवं चिंतको द्वारा ऐसे विचार व्यक्त किये जाते रहे है कि भारत में दूध उत्पादन में ब़ढ़ोतरी करने हेतु संकर गायों की संख्या बढ़ानी होगी। तथापि देशी गायों की उत्पादकता को उत्तरोतर बढ़ाने के उपाय करने होंगें। भारतीय गौवंश गुणवत्ता के आधार पर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ और सभी विदेशी नस्लों में श्रेयस्कर है। भारत में अधिक दूध देने वाली नस्लें भी है गुजरात राज्य की गीर नस्ल की गाय ने ब्राजील में आयोजित विश्व प्रतियोगिता में 64 लीटर दूध देकर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। भारतीय नस्लों की गायों का दूध अधिक गुणकारी है जिसमें प्रोटीन ।.2 किस्म की होती है, जिसकी प्रकृति धमनियों में रक्त जमाव विरोधी, कैसंर विरोधी एवं मधुमेह विरोधी होती है, इसलिए देशी गाय का दूध दौहरा लाभदायक है वहीं भारतीय गाय के दूध में बच्चों के दिमाग की वृद्धि करने हेतु आवश्यक तत्व सेरेब्रोसाईड, कन्जूगेटेड लिनोलिक ऐसिड एवं ओमेगा थ्री फेटी ऐसिड आवश्यक अनुपात में पाया जाता है।
भारतीय गौवंश में 34 निर्धारित एवं 30 स्थानीय नस्लें अपने-अपने प्रजनन क्षैत्रों में बखूबी योगदान दे रही है। साहीवाल, गीर, रेडसिन्धी, राठी और थारपारकर नस्ल की गायें प्रजनन एवं उत्पादन दोनों में श्रेष्ठ है। उचित प्रबन्धन से इन नस्लों की गायें 12-18 लीटर दूध प्रतिदिन देते हुए दूध की जरूरत को पूरा कर, ग्रामीणों को वर्षपर्यन्त रोजगार एवं भूमि को उपजाऊ बनाऐ रखने के लिए जैविक खाद उपलब्ध करवा सकती है।
हमारे पास देशी गौवंश में 4.80 करोड़ दुधारू गायों सहित 8.92 करोड़ व्यस्क मादा देशी गौवंश है, जिनकी उत्पादकता बढ़ाकर, दो ब्यांत का अन्तराल कम कर दूध एवं दूध उत्पादों की बढ़ती मांगो का पूरा किया जा सकता है । लेकिन हमारे पशुपालकों द्वारा पुराने प्रचलित सिद्धातों जैसे केवल भूसा या कड़वी ही खिलाना, घरों में उपलब्ध एक या दो खाद्यान्न वह भी अल्प मात्रा में दूध देते समय अपने सुविधा अनुसार खिलाना, पशु प्रबंधन जैसे-
ब्याने के पूर्व नहीं खिलाना, ब्याने के 2 माह बाद ग्याभिन नहीं करवाना, नियमित रूप से नमक एवं खनिज मिश्रण नहीं देना, बिमार पशुओं का उचित उपचार नहीं करवाना आदि को अपनाया जाता है, जिनके परिणामस्वरूप पीक दूध उत्पादन का कम होना या एक ब्यांत में कम दिनों तक कम दूध का देना एवं दो ब्यांत का अन्तराल बढ जाने से कम दूध उत्पादन होने की बजह से गोपालन व्यवसाय अलाभकारी सिद्ध होता जा रहा है, जबकि देशी गायों की क्षमता प्रतिदिन 10 से 12 लीटर दूध देते हुये 1 ब्यात में 2000 से 2500 लीटर दूध देने एवं प्रतिवर्ष ब्याने की हैं। इस क्षमता का दौहन करने की आवश्यकता है।
अनुसंधान परिणाम दर्शाते है कि संतुलित आहार से दूध उत्पादन बढ़ता है, उत्पादन लागत घटती हैं तथा मीथेन गैस उत्सर्जन में कमी आती है। दुधारू गायों को संतुलित आहार खिलाये बिना केवल अनुवांशिक क्षमता बढ़ा कर बेहतर दूध प्राप्त करना संभव नहीं है। आमतौर पर दूधारू गायों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पशु खाद्य पदार्थ, घास एवं सूखे चारे तथा फसल अवशेष ही खिलाये जाते हैं, जिनके फलस्वरूप उनका आहार प्रायः असंतुलित रहता है और उसमें प्रोटीन, ऊजो, खनिज तत्वों तथा विटामिनों की मात्रा कम या ज्यादा हो जाती हैं। असंतुलित आहार न केवल गायों के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है अपितु दूग्ध उत्पादन में होने वाली आय को भी प्रभावित करता है, क्योकि आहार खर्च में दुग्ध उत्पादान की कुल लागत का 70 प्रतिशत हिस्सा होता हैं। पशुओं की प्रजनन एवं दूध उत्पादन क्षमता में सुधार लाने, दो ब्यात का अन्तराल कम करने तथा दूध उत्पादको की शुद्ध आय में बढ़ोतरी हेतु दूध उत्पादकों को संतुलित आहार के बारे में शिक्षित करना अत्यन्त आवश्यक है।
हरा चारा पशुओं के लिये पोषक तत्वों का एक किफायती स्त्रोत है परन्तु इसकी उपलब्धता सीमित है। चारे की खेती के लिये सीमित भूमि के कारण, चारा फसलों एवं आम चारागाह भूमि से चारे की उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है साथ ही अतिरिक्त उत्पादित हरे चारे के संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करना होगा, जिससे कि हरे चारे की कमी के समय इनकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके।
विभिन्न प्रयोगों में पाया गया है कि खनिज तत्वों की कमी वाले आहारों का निरन्तर उपयोग करते रहने से पशु शरीर में उपस्थित खनिजों के क्रियात्मक संयोगों एवं विशिष्ठ सांद्रताओं में परिवर्तन उत्पन्न हो जाते है कई प्रकार की व्याधिया उत्पन्न हो जाती है। पशुओं को दूध देने, पुनः ग्याभिन होने एवं ब्याने के दौरान प्रोटीन व ऊर्जा की ज्यादा आवश्यकता पड़ने के कारण खनिज तत्वों एवं विटामिनों की आवश्यकता बढ़ जाती है। अतः पशुओं की सामान्य वृद्धि दर, प्रजनन क्षमता एवं उत्पादन के स्तर को बनाये रखने के लिए सभी खनिज तत्व प्रर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाना आवश्यक है। इन दिनों अधिकांश गौपालकों द्वारा महसूस किया जाने लगा है कि गायों को पर्याप्त मात्रा में दाना/बाटा/चारा देने के उपरान्त भी दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, अधिक उम्र में परिपक्व होना, समय पर ग्याबिन नहीं होना आम बात हो गई है।
दूध के साथ निकलने वाले खनिजों की पूर्ति करने एवं पशु शरीर की सामान्य वृद्धि व उत्पादन के स्तर को बनाये रखने, परासरण दाब एवं तापमान को नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से पशु की इच्छा अनुसार या पच्चीस से 30 ग्राम साधारण नमक एवं 40-50 ग्राम कम्पलीट खनिज मिश्रण अवश्य ही दिया जाना चाहिये।

गौ पालन और गाय के रखरखाव में कई सारी कमियों के बावजूद आज भारत विश्व का प्रथम स्थान वाला दुध उत्पादित देश है। अगर हम अपनी इन कमियों को कम करने की कोशिश करते है तो हम दुध उत्पादन की क्षमता का अंदाजा भी नहीं लगा सकते है। गाय के पालन और रखरखाव में बुनियादी चीजों को जोड़ने से देश की न सिर्फ अर्थव्यवस्था को फायदा होगा, बल्कि भारत की रीड़ भारतीय किसानो को भी पैकेट खाद्य और नए तकनीक के उपकरणों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। जो जमीन को समय अंतराल पर बंजड़ बना देते है। गौपालन एंव गौसंवर्धन में जागरुकता लाकर हम दुध उत्पादन में विश्व नम्बर एक पर बने रहने वरण और कई क्षेत्र में कई देशों से आगे निकल सकते है।