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Tuesday, September 13, 2016

गायों की सेवा करो, रोज नवाओ शीश । खुश होकर देंगी तुम्हें, वे लाखों आशीष ।।


गायों की सेवा करो, रोज नवाओ शीश ।
खुश होकर देंगी तुम्हें, वे लाखों आशीष ।।
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बछड़े उनके जोतते, खेत और खलियान ।
जिनसे पैदा हो रहे, रोटी-सब्जी-धान ।।
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घास-फूस खाकर करें, दूध, दही की रेज ।
इसी वजह से सज रही,मिष्ठानों की सेज ।।
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गोबर करता है यहाँ, ईधन का भी काम ।
गो सेवा जिसने करी, हो गये चारो धाम ।।
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गो माता करतीं सदा, भव सागर से पार ।
इनकी तुम सेवा करो, जीवन देंगी तार ।।
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गोबर से बढ़िया नही, खाद दूसरी कोय ।
डालोगे गर यूरिया, लाख बीमारी होय ।।
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गो पालीं तब ही बने, कान्हा जी गोपाल ।
दूध-दही से वे करें, सब को मालामाल ।।
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गायों की सेवा करो, और बचाओ जान ।
कान्हा आगे आयेंगे,सुख की छतरी तान ।।
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बची नहीं गायें अगर, ऐसा होगा हाल ।
तरसेंगे फिर दूध को,इस माटी के लाल ।।
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जब भी हो अंतिम समय,करिये गैया दान ।
हमको यह समझा रहे, अपने वेद पुरान ।।

गूंज उठी यह धरती सारी गौरक्षा के नारों से

॥श्रीसुरभ्यै नमः॥वन्दे धेनुमातरम्॥

गुंज उठी यह धरती सारी
गुंज उठी यह धरती सारी गोरक्षा के नारो से-2
जुंज पङो ऐ भारत वालो,गवों के हत्यारों से-2
कहाँ छूपे यदुवंशी सारे झट अपना मुख दिखलाओ।
वीर पाण्डवों की संतों फिर मैदानों आओ।
गोमाता के प्राण बचाओ, इन पापी गद्दारों से।
जुंज पङो ऐ भारत वालो, गवों के हत्यारों से-2
गुंज उठी यह धरती सारी गोरक्षा के नारो से-2
जुंज पङो ऐ भारत वालो………….2
कहाँ गई वो परशुराम के एकलोती संताने,
कहाँ गये वो हल्दी घाटी के महाराणा मस्ताना,
कहाँ गयी वो वीर रमणीया जो खेली अंगारों से।
जुंज पङो ऐ भारत वालो, गवों के हत्यारों से-2
गुंज उठी यह धरती सारी गोरक्षा के नारो से-2
जुंज पङो ऐ भारत वालो…………2
जाग उठो हे वीर मराठों दुश्मन को अब ललकारो।
गोमाता का प्राण बचाओ हे पंजाबी सरदारों।
दिल्ली की गलियाँ गुंजा दो, अपनी तेज हुँकारों से।
जुंज पङो ऐ भारत वालो, गवों के हत्यारों से-2
गुंज उठी यह सारी गोरक्षा के नारो से-2
जुंज पङो ऐ भारत वालो………….।
जगतगुरू के सपने को अब सच्चा कर दिखलाओ,
इतिहासों के पन्नों पर तुम काला दाग न लगवाओ,
गोरक्षा की भीख मांगता भंवर हिन्द रखवालों से,
जुंज पङो ऐ भारत वालो, गवों के हत्यारों से-2
गुंज उठी यह धरती सारी गोरक्षा के नारो से-2
जुंज पङो ऐ भारत वालो………..॥
वन्दे धेनुमातरम्!

भारतीय गायो की प्रजातिया:-


सायवाल जाती 
यह प्रजाति भारत में कही भी रह सकती है। ये दुग्ध उत्पादन में अच्छी होती है।इस जाती के गाये लाल रंग की होती है। शरीर लम्बा टांगे छोटी होती है। छोड़ा माथा छोटे सिंग और गर्दन के निचे तवचा लोर होता है। इसके थन जुलते हुए ढीले रहते है।इसका ओसत वजन 400 किलोग्राम तक रहता है। ये ब्याने के बाद 10 माह तक दूध देती है। दूध का ओसत प्रतिदिन 10 से 16 लीटर होता है। ये पंजाब में मांटगुमरी रावी नदी के आसपास और लोधरान गंजिवार लायलपुर आदि जगह पर पायी जाती है।
रेड सिंधी
इसका मुख्य स्थान पकिस्तान का सिंध प्रान्त माना जाता है। इसका रंग लाल बादामी होता है। आकर में साहिवाल से मिलती जुलती होती है। इसके सिंग जड़ो के पास से काफी मोटे होते हे पहले बाहर की और निकले हुए अंत में ऊपर की और उठे हुए होते है।शरीर की तुलना में इसके कुबड बड़े आकर के होते है। इसमें रोगों से लड़ने की अदभुत क्षमता होती हे इसका वजन ओसतन 350 किलोग्राम तक होता है। ब्याने के 300 दिनों के भीतर ये 200लीटर दूध देती है।
गिर जाती की गाय 
इसका मूलस्थान गुजरात के काठियावाड का गिर क्षेत्र है।इसके शरीर का रंग पूरा लाल या सफेद या लाल सफेद काला सफेद हो सकता है।इसके कान छोड़े और सिंग पीछे की और मुड़े हुए होते है। ओसत वजन 400 किलोग्राम दूध उत्पादन 1700 से 2000 किलोग्राम तक हो माना गया है।
थारपारकर 
इसकी उत्पति पाकिस्तान के सिंध के दक्षिण प्रक्षिण का अर्धमरुस्थल थार में माना जाता है।इसका रंग खाकी भूरा या सफेद होता है। इसका मुह लम्बा और सींगो के बिच में छोड़ा होता है। इसका ओसत वजन 400 किलोग्राम का होता है।इसकी खुराक कम होती है ओसत दुग्ध उत्पादन  1400 से 1500 किलोग्राम होता है।
काँकरेज 
गुजरात के कच्छ से अहमदाबाद और रधनपुरा तक का प्रदेश इनका मूलस्थान है।ये सर्वांगी वर्ग की गाये होती है। इनकी विदेशो में भी काफी माग रहती है।इनका रंग कला भूरा लोहया होता है।इसकी चाल अटपटी होती हे इसका दुग्ध उत्पादन 1300 से 2000 किलोग्राम तक रहता है।
मालवी 
ये गाये दुधारू नही होती हे इनका रंग खाकी सफ़ेद और गर्दन पर हलका कला रंग होता है। ये ग्वालियर के आसपास पायी जाती है।
नागोरी 
ये राजस्थान के जोधपुर इनका प्राप्ति स्थान है। ये ज्यदा दुधारू नही होती है लेकिन ब्याने के बाद कुछ दिन दूध देती है।
पवार 
इस जाती की गाय को गुस्सा जल्दी आ जाता है। ये पीलीभीत पूरनपुर 
खीरी मूलस्थान है। इसके सिंग सीधे और लम्बे होते है और पुछ भी लम्बी होती है इसका दुग्ध उत्पादन भी कम होता है।
हरियाणा
इसका मूलस्थान हरियाणा के करनाल गुडगाव दिल्ली हे।ये उचे कद और गठीले बदन की होती है। इनका रंग सफेद मोतिया हल्का भूरा होता है
इन से जो बेल बनते है हे वो खेती के कार्य और बोज धोने के लिए उपयुक्त होते है। इसका ओसत दुग्ध उत्पादन 1140 से 3000 किलोग्राम तक होता है।
भंगनाडी 
ये नाड़ी नदी के आसपास पाई जाती है। इसका मुख्य भोजन ज्वार पसंद है। इसको नाड़ी घास और उसकी रोटी बना कर खिलाई जाती है। ये दूध अच्छा देती है।
दज्जाल
ये पंजाब के डेरागाजीखा जिले में पायी जाती हे उसका दूध भी कम रहता है।
देवनी 
ये आंद्र प्रदेश के उत्तर दक्षिणी भागो में पायी जाती है ये दूध अच्छा देती है और इसके बेल भो खेती के लिए अच्छे होते है।
निमाड़ी 
नर्मदा घाटी के प्राप्ति स्थान है। ये अच्छी दूध देने वाली होती है।
राठ 
ये अलवर राजस्थान की गाये हे ये खाती कम है और दूध भी अच्छा देती है।
अन्य प्रजाति की गाये 
गावलाव
अगॊल या निलोर 
अम्रत महल -वस्तप्रधान गाय 
हल्लीकर - वस्तप्रधान गाये 
बरगुर  -     वस्तप्रधान गाये 
बालमबादी -वस्त प्रधान गाये 
कगायम - दूध देने वाली गाये 
 क्रष्णवल्ली - दूध देने वाली गाय

"भजन"गोमाता की सेवा करना हर हिन्दू का कर्म है।


गोमाता की सेवा करना हर हिन्दू का कर्म है।
गोमाता की रक्षा करना हर हिन्दू का धर्म है।.धृ।.
सूखे तिनके खाकर भी जो दूध सभीको देती है।
शाकाहारी मूक बेचारी जो दे दो खा लेती है।
बछडोंका हमें दूध पिलाती ये दिलकी कितनी नर्म है।. १।.
बूढी और लाचारी गैया निशदिन काटी जाती है।
जीवन भर अमृत पिलवाती कैसी गति वो पाती है।
भारत हिन्दू देशमे होता ये कैसा अधर्म है।. २।.
हिन्दू एकता और शक्ति का गोमाता ही प्रतिक है।
राष्ट्र चिन्ह इसको बनवाओ बात ये बिलकुल ठीक है।
खून हमाराभी ठण्डा नहीं बतला दो ये गर्म है।. ३।.
हर नगर गाँव और देशमे गोशालाये बनवाओ।
हिन्दुओ की माताओको खुले आम ना कटवाओ।
जागो हिन्दू भाई बहनो बची अगर कुछ शर्म है